(नागपत्री एक रहस्य-35)

अचानक तेज फुंकार की आवाज और धरती के कंपन को देख सोमेश घबराकर पलटकर पीछे की ओर भागा, लेकिन उसे ऐसा लगा जैसे वह एक असफल प्रयास कर रहा है, क्योंकि उस जमीन में उसे वहीं पर जकड़कर रख दिया हो, और वह विवश हो गया उसी स्थान पर खड़े रहने के लिए।

                अब उसके पास एक मुख दर्शक की तरह खड़े रहकर तमाशा देखने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था, और इधर लगातार बदलता हुआ माहौल उसे अंदर तक डर में डुबो दे रहा है , लेकिन तभी उसने देखा कि जैसे आसपास के वातावरण में विशेष हलचल के साथ एक रिंग नुमा आकृति दीवार की तरह खड़ी होने लगी, और उस पूरी जगह को जैसे उसने अपने भीतर समा लिया। 




फिर उसका ध्यान अचानक लक्षणा की और गया, क्योंकि उसकी प्रतिक्रिया के ठीक विपरीत किसी बच्चे की तरह मुस्कुरा रही थी, और ना जाने उसके मन में क्या-क्या चल रहा था, और आश्चर्य तो इस बात का था कि जिस दंड को या जिस छड़ीनुमा आकृति को जो उन मूर्तियों के पास बनी हुई थी, और लगभग मूर्ति के आकार की कुछ प्रतिशत ही रही होगी।
                          जैसे ही उस छोटे से पत्थर की आकृति को लक्षणा ने छुआ था, वह उछलकर किसी खिलौने की तरह लक्षणा के हाथों में आ गई, और देखते ही देखते वह अप्रत्याशित रूप से बढ़कर एक स्वर्ण घड़ी के रूप में परिणित हो गया, जो लगभग लक्षणा के ऊंचाई के बराबर ही थी जिसे वह सावधानी पूर्वक अपने हाथ में थामे हुए थी।



इधर वे पत्थर की मूर्तियां जो अब तक आकार में छोटी थी सजीव रूप लेने लगी, और ऐसे लगा जैसे उन्होंने किसी जादुई जल से छुड़ाया गया है, और वे मनुष्य आकृति में लगभग बड़े हो गए, वहां सब कुछ अप्रत्याशित सा लग रहा था।
            जो कुंड अभी तक छोटा था और जिसमें से बुलबुले निकल रहे थे, उस जगह की जमीन में से विस्तार हो गया, वह छोटा सा कुंड अपनी जगह पर एक विशाल आकार लेने लगा और पानी के बुलबुले फव्वारे में परिवर्तित हो गए।



वे पत्थर की आकृतियां सजीव सी लगने लगी, तब लक्षणा ने आगे बढ़कर वह दंड उस मूर्ति के हाथ में दे दिया, जिसको छोड़ बाकी सभी चार मूर्तियों के हाथ में विशेष आकृतियों की अलग-अलग छड़ियां थी, और वे अब अपना मुहूर्त रूप लेने लगी थी। लक्षणा ने वह छड़ी नुमा दंड जैसे ही उस मूर्ति के हाथ में थमाया, देखते ही देखते चारों तरफ का वातावरण अचानक शांत हो गया, और उस कुंड से एक असंख्य फणों वाले नाग से घिरा हुआ शिवलिंग ऊपर की ओर आने लगा।
                     जिसे चारों तरफ से पानी के फव्वारे से जैसे अलंकृत कर रहे हो, क्योंकि उन पानी की बूंदों से टकराकर सूर्य की किरणें चमत्कारिक रूप से अलग-अलग रंगों में बढ़ जा रही थी। 


सोमेश ने ऊपर सिर उठाकर देखा और इस पहाड़ की तलछटी तक जो सूर्य की किरणें पहुंचना असंभव है, फिर भला इसके आगे की वह सोच पाता। उस विशाल आकृति के सिर पर चमकता हुआ मणि देखकर वह दंग रह गया और तब उसे आभास हुआ कि वास्तव में वह जिसे रिंग नुमा आकृति दीवार के रूप में समझने की भूल कर रहा है, वह एक विशाल नाग की कुंडली थी।
                  जो अत्यंत ऊंचाई से सिर नीचे कर यह सारी प्रतिक्रिया देख रहा है किसी राक्षस की भांति, और उसी के माथे की मणि वास्तव में सूर्य की तरह चमक रही है, और जैसे ही उस दंड को लक्षणा ने पांचवें मूर्ति के हाथ में रखा माहौल शांत होने के साथ ही वे सभी मूर्तियां जीवंत हो उठी और लक्षणा उनके सामने इस तरह खड़ी थी जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है और उसके लिए सब कुछ सामान्य सी बात हो। 



उन पांचों मनुष्य आकृतियों ने उस कुंड से अपने शिवलिंग का पूजन किया और अपना परिचय पंच शक्तियों के प्रति रूप में दिया, और बताया कि कैसे त्रुटिवश वे सभी अभिमान में आकर एक समय इस नागतप भूमि में आए, और जिसमें से यह अग्नि रूप अभिमान से भर इस शिवलिंग जो इस तालाब में अत्यंत सुशोभित हो रहा था, और जिसे यह संरक्षित नाग अपने भीतर समाहित कर पश्चाताप में लीन था। 
                  इन अग्नि के प्रतिरूप ने यह सोच कि जब तालाब का पानी ही सूख जाएगा, तब शायद वह भीतर चमकने वाला मणि जो शिवलिंग के ठीक ऊपर स्थित था, और एक नीली आभा के साथ अत्यंत शीतल किरणें बिखर रहा था, इसलिए  उस जल को सुखाने की मंशा से अपना दंड तालाब के किनारे रख वह उस जल में उतर गया, जिसके लिए बाकी चारों ही प्रतिरूप शक्तियों ने उन्हें ऐसा ना करने की सलाह भी दी थी। 




लेकिन उन्हें तो बस किसी की भी तरह उस मणि को हासिल कर अपने मुकुट दंड में सामने की जोश-ख़रोश सवार थी, और उन्होंने यह सोचे बिना की शिवलिंग पर स्थित वह नीलमणि कोई साधारण नहीं हो सकता तालाब में उतर गया ।
                  लेकिन अगले ही पल उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वे अपनी ही जगह पर पत्थर की मूर्ति में परिणित होने लगे, और उन्हें उछाल कर तालाब के किनारे फेंक दिया। 


तब से आज तक ये पांचो प्रतिरूप शक्तियां अपने दुस्साहस का परिणाम भुगत रही हैं, अनेकों विनती के पश्चात विनती के पश्चात जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि आप जड़त्व रूप में ही इस शिवलिंग की आराधना कीजिए जब आपकी साधना सफल होगी , तब नाग माता स्वयं अपने एक अंश को इस पृथ्वी पर प्रकट करेगी और वही शक्तियां कर उस दंड को तुम्हारे हाथ में सौंपेगी, तभी तुम्हारा प्रायश्चित पूर्ण होगा ।
                              और तब से लेकर आज तक इतने युग बितने के बाद वह सर्प नगरी आज सोपन के नाम से प्रसिद्ध है, और नाग माता का अंश होने के नाते लक्षणा ने बिना किसी प्रभाव के उस दंड को अपने हाथों में उठाकर वापस उन्हें सौंपा और उन्हें पुनः अपनी शक्ति लौटाई।


जिसके आभार के साथ उन सभी पंच शक्तियों के प्रतिरूपो ने लक्षणा को आभार प्रकट किया, और यह वादा किया कि वे हमेशा लक्षणा को अपने प्रभाव से मुक्त रखेंगे।
            लक्षणा जब तक मन चाहे किशोरी रूप में बनी रह सकती है, उसे जल शक्ति या वायु के साथ धरती और आकाश कहीं भी विचरण करने की पूरी छूट होगी, वह जब चाहे तब उन पांचों का स्मरण कर उन्हें प्रत्यक्ष बुलावा भी भेज सकती है। 



यह कहते हुए उनमें से वायु के प्रतिरूप ने लक्षणा से कहा कि लक्षणा अभी वो समय नहीं आया कि तुम्हे  इन शक्तियों की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए हम अभी से तुम्हारा जीवन कठिनाइयों में नहीं डालना चाहते, और इसलिए समय चक्र को बदलकर यहां उपस्थित सभी के द्वारा जिया गया प्रत्येक पल उनके मस्तिष्क से हटाने जा रही हूं।
                        कहते हुए पंच शक्तियों ने एक साथ उस शिवलिंग को प्रणाम किया और अपने दंड को आकाश की ओर इंगित किया, और समय चक्र को कुछ समय पहले वापस घुमा दिया।


अब लक्षणा को ना कुछ याद था और ना ही सोमेश को, बस एक धुंधला सा सपना उनके जेहन में था, और बड़ी असमंजस की स्थिति में वे अपने अपने स्थान से वापस आए, लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआती लक्षणा के संकलन की।


क्रमशः.....

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1 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 12:55 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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